Shiv Ram Stuti | भगवान राम की स्तुति भगवान भोले नाथ द्वारा रचित
भगवन शिव द्वारा रचित भगवन राम की स्तुति पौराणिक कथा
आज आप लोगो को शिव राम स्तुति (shiv ram stuti) के बारे में बताने जा रहा हु | ऐसा बताया जाता है जब भगवन राम रावन का वध कर अयोध्या लौट रहे थे | तो अयोध्या नगरी के नगर वासी तो उनके लौटने की खुशिया तो मना रहे थे | साथ में देव लोक में भी उनके अयोध्या लौटने की ख़ुशी साफ़ दिख रही थी और एक कारण यह भी था की असत्य पे सत्य की विजय हुई थी|
इस समय भगवन शिव ने भगवन राम के लिए एक स्तुति का निर्माण किया था जिस को शिव राम स्तुति (shiv ram stuti) से जाना जाता है |
इस स्तुति का उल्लेख Uttar Kand Ramayan में मिलता है |
Shiv Ram Stuti
बैनतेय सुनु संभु तब
आए जहँ रघुबीर।
बिनय करत गदगद गिरा
पूरित पुलक सरीर॥13 ख॥
जय राम रमारमनं समनं।
भवताप भयाकुल पाहि जनं॥
अवधेस सुरेस रमेस बिभो।
सरनागत मागत पाहि प्रभो॥1॥
दससीस बिनासन बीस भुजा।
कृत दूरि महा महि भूरि रुजा॥
रजनीचर बृंद पतंग रहे।
सर पावक तेज प्रचंड दहे॥2॥
महि मंडल मंडन चारुतरं।
धृत सायक चाप निषंग बरं।
मद मोह महा ममता रजनी।
तम पुंज दिवाकर तेज अनी॥3॥
मनजात किरात निपात किए।
मृग लोग कुभोग सरेन हिए॥
हति नाथ अनाथनि पाहि हरे।
बिषया बन पावँर भूलि परे॥4॥
बहु रोग बियोगन्हि लोग हए।
भवदंघ्रि निरादर के फल ए॥
भव सिंधु अगाध परे नर ते।
पद पंकज प्रेम न जे करते॥5॥
अति दीन मलीन दुखी नितहीं।
जिन्ह कें पद पंकज प्रीति नहीं॥
अवलंब भवंत कथा जिन्ह कें।
प्रिय संत अनंत सदा तिन्ह कें॥6॥
नहिं राग न लोभ न मान सदा।
तिन्ह कें सम बैभव वा बिपदा॥
एहि ते तव सेवक होत मुदा।
मुनि त्यागत जोग भरोस सदा॥7॥
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मुनि मानस पंकज भृंग भजे।
रघुबीर महा रनधीर अजे॥
तव नाम जपामि नमामि हरी।
भव रोग महागद मान अरी॥9॥
गुन सील कृपा परमायतनं।
प्रनमामि निरंतर श्रीरमनं॥
रघुनंद निकंदय द्वंद्वघनं।
महिपाल बिलोकय दीन जनं॥10॥
बार बार बर मागउँ
हरषि देहु श्रीरंग।
पद सरोज अनपायनी
भगति सदा सतसंग॥14 क॥
बरनि उमापति राम गुन
हरषि गए कैलास।
तब प्रभु कपिन्ह दिवाए
सब बिधि सुखप्रद बास॥14 ख॥
सुनु खगपति यह कथा पावनी।
त्रिबिध ताप भव भय दावनी॥
महाराज कर सुभ अभिषेका।
सुनत लहहिं नर बिरति बिबेका॥1॥
जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं।
सुख संपति नाना बिधि पावहिं॥
सुर दुर्लभ सुख करि जग माहीं।
अंतकाल रघुपति पुर जाहीं॥2॥
सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई।
लहहिं भगति गति संपति नई॥
खगपति राम कथा मैं बरनी।
स्वमति बिलास त्रास दुख हरनी॥3॥
बिरति बिबेक भगति दृढ़ करनी।
मोह नदी कहँ सुंदर तरनी॥
नित नव मंगल कौसलपुरी।
हरषित रहहिं लोग सब कुरी॥4॥
नित नइ प्रीति राम पद पंकज।
सब कें जिन्हहि नमत सिव मुनि अज॥
मंगल बहु प्रकार पहिराए।
द्विजन्ह दान नाना बिधि पाए॥5॥
भगवन राम की स्तुति विडियो (shiv ram stuti video )